खुशियां कम और अरमान बहुत हैं
जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत हैं,,
करीब से देखा तो है रेत का घर
दूर से मगर उनकी शान बहुत हैं,,
कहते हैं सच का कोई सानी नहीं
आज तो झूठ की आन-बान बहुत हैं,,
मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी
यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं,,
तुम शौक से चलो राहें-वफा लेकिन
जरा संभल के चलना तूफान बहुत हैं,,
वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात
वैसे शहर में अपनी पहचान बहुत हैं.....
अंजान
खुशियां कम और अरमान बहुत हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक !
जवाब देंहटाएंलेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंपढ़कर अच्छा लगा।
badhiya ...
जवाब देंहटाएंबहुत महीन सी भावों को समेटा ह आपने इस रचना में , पढ कर अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर
शब्दों की मुस्कराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
Bahut Sundar Tareeke se bhav piroye hain.
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